जिंदगी है कुछ नही बस(नवगीत)
नवगीत _12
एक मुट्ठी
भर समय है
रेत सी फिसलेगी मानी
जिंदगी है
कुछ नही बस
मात्र दो दिन की कहानी
आ गया
संसार में इक
जीवधारी ज्ञात होकर
खिलखिलाई
जिंदगी फिर
इक नया प्रभात पाकर
हर्षध्वनि
करती दिशाएँ
नव -नवागत देखता है
सभ्यताएँ
गोद लेकर
सीख देती खानदानी ।
जीतती
मन को जवानी
छोड़कर उस बालपन को
ढूंढ़ता यौवन
क्षितिज तक
सूर्य तारे नभ गगन को
चाहती है
नापना जग
मुग्धता के पंख से जो
कल्पनाओं
को लिए नित
त्यागकर सच की निशानी ।
वक़्त ने है
उम्र निगला
प्राण को करके अकेला
जिंदगी हो
मौन सोई
मौत ने क्या खेल खेला ।
जीतना क्या
हारना क्या
कह रही संवेदनायें
भूल दुनिया
सब गई
जब हो गई बातें पुरानी ।
रकमिश सुल्तानपुरी