जिंदगी सस्ती हुई,बिक रही चौराहों पर
जिंदगी सस्ती हुई
बिक रही चौराहों पर
लग चुकी इसको नजर
ताबीज़ चाहे बाहों पर
सब तरफ धुंआ उठा
सब के चेहरे स्याह हैं
जितना जो क्रूर है
उसकी उतनी वाह है
देख के भी सब चुप है
पहरा है यूँ निगाहों पर
जिंदगी सस्ती हुई
बिक रही चौराहों पर
रोटियां पे मार है
बेटियां बनी लाचार हैं
किसको पे हो यकीं यहाँ
क़ातिल तो पहरेदार है
सांस लेना जुर्म है
कर है अब हवाओं पर
जिंदगी सस्ती हुई
बिक रही चौराहों पर।
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देवेश कुमार पाण्डेय
कुशीनगर ,उत्तर प्रदेश