जिंदगी में जो उजाले दे सितारा न दिखा।
गज़ल
काफ़िया- आ
रदीफ़- न दिखा
2122 1122 1122 22(112)
जिंदगी में जो उजाले दे सितारा न दिखा।
दर्द-गर्दिश में कोई हाथ बढ़ाता न दिखा।
रात दिन जंग सी लड़ते रहे जिनके खातिर,
उनको इंसान वही भूख से मरता न दिखा।
उड़ते परिंदों ने समंदर पे नज़र खूब रखी,
दूर तक देखा लिया कोई जज़ीरा न दिखा।
एक बेटा था वही देश पे कुर्बान हुआ,
बूढ़ी आंखों को कभी आंख का तारा न दिखा।
है ये शासन व प्रशासन की ही तानाशाही,
जिसने आवाज उठाई वो दुबारा न दिखा।
रात दिन जिसके हुए प्यार में पागल प्रेमी,
बेवफ़ा यार को वो प्यार हमारा न दिखा।
……..✍️ प्रेमी