जिंदगी पेड़ जैसी है
जिंदगी पेड़ जैसी है ,कभी खिजां,कभी बहार।
रंग बिरंगे रंगों से सजी,कभी नफरत,कभी प्यार।
कभी ये हरी भरी फूलों से ,कभी है सूखा शज़र।
देख कैसे फलेगी फूलेगी, थोड़ा इससे प्यार कर।
कभी बर्फ से ढकी, लहजों की झेले सर्दियां।
कभी सिर झुकाए खड़ी,कभी करती ये मनमर्जिया।
कभी धूप में जले ,कभी छांव की है मस्तियां
फल देना कर्म इसका ,इतनी इसकी है हस्तियां।
दुख सुख सहने के लिए,खुद को संभाल तू
पेड़ बन कर छांव दे ,कर दे कमाल तू
सुरिंदर कौर