जिंदगी तुझसे हार गया
जिंदगी तुझसे वह हार गया,
सहर्ष आत्महत्या स्वीकार गया,
वह पंखे से है लटक गया,
न जाने वह कैसे भटक गया,
न थी कीमत उन नंबर की,
जिन नंबर से वह टूट गया,
जिंदगी से अपने वह रूठ गया,
परिवार तक की न चिंता की,
वह बगल को देख के टूट गया
न जाने क्यों वह रूठ गया,
जिंदगी वह तूझसे हार गया,
सहर्ष आत्महत्या स्वीकार गया ।
लड़ने का जज्बा था उसमे
हां रक्त जुनूनियत थी उसमे
जरूरत थी हवा लगाने की
चिंता को मन से भागने की
फिर भी कोई यह कर न सका
उसको कोई भी रोक न सका
जिंदगी वह तुझसे हार गया
सहर्ष आत्महत्या स्वीकार गया ।
उसको तक कोई समझ न सका
जब हसी हसी में कहता था,
बातों को सबने टाल दिया,
मस्ती मस्ती में हार गया,
न जाने कब वो तार गया,
पंखे पर से वह झूल गया
मां का प्यार वह भूल गया,
न जाने क्या उसको आन पड़ी,
जो किसी को भी न जान पड़ी,
जिंदगी वह तुझसे हार गया,
सहर्ष आत्महत्या स्वीकार गया ।
लिखते छिठी खत उसके
क्या हाथ तक न कापें थे
शायद खतों ने उसको रोका था
फिर वह क्यों रुक न सका
ऐसी क्या उसपे आन पड़ी,
जो जिंदगी उसकी जान पड़ी।
क्या वह प्यार का भूखा था,
या नंबर ने उसको सताया था
लिख खतों में वह चला गया
आंखों में आंसु दे चला गया
जिंदगी वह तुझसे हार गया
सहर्ष आत्महत्या स्वीकार गाया ।
अनंत से न लिखा गया
बात अधूरी फिर रह सी गई
स्याही पन्नो पर सिमट गई
न जाने क्यों वह टूट गया
जिंदगी से अपने वह रूठ गया ,
जिंदगी वह तुझसे हार गया
सहर्ष आत्महत्या स्वीकार गया