जिंदगी! क्या कहूँ तुझे
जिंदगी! क्या कहूँ तुझे
बस मुसाफिर सा बना
दिया है अनदेखी राहों का
मंजिल की तलाश में भटकता
अनगिनत सपनें लिये
खोज रहा हूँ अपना आशियाना
जिसका कोई ठिकाना नही है।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया..✍️
जिंदगी! क्या कहूँ तुझे
बस मुसाफिर सा बना
दिया है अनदेखी राहों का
मंजिल की तलाश में भटकता
अनगिनत सपनें लिये
खोज रहा हूँ अपना आशियाना
जिसका कोई ठिकाना नही है।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया..✍️