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29 Jun 2020 · 1 min read

जिंदगी को ढूँढता

बाँधकर आंखों पे पट्टी रोशनी को ढूंढता
छोड़कर अपनों को कोई अजनबी को ढूंढता

जिंदा था तब जिंदगी की क़दर भी जानी नहीं
एक मुर्दा फिर से अपनी जिंदगी को ढूंढता

सांझ भी ढलने लगी है अँधेरा घिरने लगा
कोई बूढ़ा फिर से अपनी जवानी को ढूंढता

दीमकों ने खा किताबों के पेज ऐंसे खा लिए
लिखने वाला उसमें अपनी कहानी को ढूंढता

आशियाना जल गया उसका बचा कुछ भी नहीं
फिर भी वह आफत का मारा निशानी को ढूंढता
✍️ सतीश शर्मा

Language: Hindi
2 Likes · 293 Views
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