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30 Aug 2020 · 1 min read

जिंदगी कैसी रही!

यह कविता मेरे द्वारा अनुभव किये एक घटनाक्रम
काव्य रूप है

मौत उसके सामने खड़ी
मुस्कुरा के उससे
कहने लगी
जिंदगी कैसी रही

थी वो उथले
जल भंबर के रूप में
उसने पूंछा
बता क्योँ
कूदा नशे में
मुझमे
जब मैं खुले
आसमान में
बरसात के पानी से
नहा रही
अब बता
जिंदगी कैसी रही

यह सुनके उसका
मन ठहर गया
वो गहरी
सोच में पड़ गया
थे जब बरसात
में मेघा बरस
रहे
तो हम
क्यों इन
बरसती
बूंदों को
छोड़कर
शौक शौक में
नहाने
कल- कल
करते बहते हुए
पानी में कूद
गए
गलती तो
सारी
हमारी रही
अब
क्या जिंदगी
में अतिंम सांस न रही

-जारी

©कुल’दीप’ मिश्रा

Language: Hindi
6 Likes · 497 Views
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