पुकार
यदि सुन लेते तुम मेरी पुकार
मन प्रदीप्त पुनः हो जाता
गाने लगते नवीन राग
देता सुगन्धि पल्लव पल्लव
प्रकीर्ण हो जाता पराग
महक उठता बसन्त मधुमास
बजती मुरली अबकी बार
यदि सुन लेते……..
हे मुकुन्द मणि सुन पाते
हम भी तुमसे कुछ कह पाते
तुम भी अपनेपन से हमको
काश कदाचित कुछ कह जाते
देते सानिध्य जो पल भर का
भर जाती अंजुली अबकी बार
यदि सुन लेते…….
प्रीत की रीति नई हो जाती
हे कमल नयन की देखे पाखी
कहाँ छिपती अम्बुज की झांकी
ये दृष्टि तुम्हारी सबकुछ कह जाती
किया बहिष्कृत ये दोष मेरा ही
अवचेतन में किन्तु करता वार
यदि सुन ……..
स्नेह पाश का होता आलिंगन
ज्यूँ जेठ मास सावन का वर्षण
मन कपोल नव खिल जाते
तरुवर सर अश्रु जल वह जाते
रखते तुम वरद हस्त शीश तो
मिल जाता त्वम करुणा का सार
यदि तुम सुन लेते मेरी पुकार
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