जिंदगी के धागे,
जिंदगी के धागे,
कभी सुलझे से,तो कभी उलझे से,
यह जिंदगी है जनाब,
कभी बेमतलब ही उलझ जाती है,
तो कभी सहज ही सुलझ जाती है,
कभी हम जैसा सोचते हैं,और हो कैसा जाता है,
और कभी हम जैसा सोचते भी नहीं,वैसा हो जाता है।
पथ में कांटे हैं कहीं,तो कहीं फूल भी बिछाए हैं,
जिंदगी ने जीने के,नए नए ढंग हमें रोज बतलाए हैं,
देखा जाए तो आसान नहीं है जंग,
थोड़ी उम्मीदें थोड़ा हौसला,हम हो जाते है जिंदगी के संग।
धागे ये अनेक है, तो उलझ तो जाते ही हैं,
सुलझाया जो इत्मीनान से,तो सुलझ भी जाते हैं,
थोड़ी चमक चुरा लो इस चांद से,
थोड़ी लाली लगा लो इस आसमान से,
इस जिंदगी के रंग तो बड़े ही निराले हैं,
सुनो, बस थोड़ा सब्र और,
जिंदगी के धागे बस सुलझने ही वाले हैं।।
स्वरचित ✍️
दीपाली कालरा नई दिल्ली