जिंदगी के कुछ कड़वे सच
जिंदगी के कुछ कड़वे सच
जिंदगी में कभी भी किसी को
बेकार मत समझो क्योंकि
बंद घड़ी भी दिन में
दो बार सही समय बताती है ।
किसी की बुराई तलाश करने ,
वाले इंसान की मिसाल उस
मक्खी की तरह है जो सारे
खूबसूरत जिस्म को छोड़कर
केवल जख्म पर ही बैठती है ।
टूट जाता है गरीबी में
वो रिश्ता जो खास होता है
हजारों यार बनते हैं जब
पैसा यपास होता है।
मुस्कुरा कर देखो तो
सारा जहां रंगीन लगता है
वरना भीगी पलकों से तो आईना
भी धुंधला नजर आता है
बुरे दिनों का एक अच्छा फायदा है
बुरे वक्त मे ही अच्छे रिश्तो की परख होती है।
जिंदगी में अच्छे लोगों की तलाश मत करना
खुद अच्छे बन जाओ आपसे मिलकर
शायद किसी की तलाश पूरी हो जाए।
जब हम बोलना नहीं जानते थे तो
हमारे बोले बिना मां
हमारी बातों को समझ जाती थी
और आज हम हर बात पर कहते हैं छोड़ो मां आप नहीं समझोगी।
इंसान की तरह बोलना ना आए तो
जानवर की तरह मौन रहना चाहिए
ये सोच है हम इंसानों की कि एक अकेला इंसान क्या कर सकता है पर देख जरा सूरज को अकेला ही तो चमकता है।
स्वरचित कविता
सुरेखा राठी