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22 Sep 2019 · 1 min read

जिंदगी की सहेली – (हरी बाबू गुप्ता ‘हरि’ , डॉ० प्रतिभा माही के पिता)

जिंदगी की सहेली
*****************

जिंदगी…..!
एक पहेली है….
उसकी भी एक सहेली है…!
दोस्ताना दोनों का इतना पक्का है…
आज तक…
किसी ने किया नहीं होगा..
जिसने किया इतना दोस्ताना…
तो फिर वह कभी जिया नहीं होगा…।

रहती है दोनों एक ही शहर में…
लेकिन कभी दोनों मिली नहीं…
याद करती हैं दोनों एक दूसरे को…
मिलना भी चाहती हैं
पर कभी मिली नहीं….

जीती रही जिंदगी अठखेलियां मना कर
अपने कर्मों रहम पर..
सफर करती रही …!
बुलाती है जिंदगी उसको कभी कभी
wपर उसके बुलाने से भी…
वह कभी नहीं आती ….!
जब वह बुलाती है …
तो वह उसके साथ खुशी-खुशी चली जाती है….

सहेली की खबर आती है…
बहना..!
तेरे बिना अब कैसे हो रहना …
तेरे पास आऊंगी …
दुख सुख न सहना ….!
मेरी गोद में बैठ कर …
हमेसा मेरे ही साथ रहना….

फिर एक दिन….!
जिंदगी की सहेली आती है…
और..
बाइज्जत अपने साथ ले जाती है…
ज़िन्दगी की सहेली को लोग बुरा भला कहते हैं …
फिर भी वह बड़ा धर्म निभा जाती है …

दोस्ताना इतना पक्का था…
उसके सहारे…
सखी को नवजीवन दे
खुशियां भर ….
पुनः मिलने का वादा कर…
चली जाती है…

बताओ कौन है वो..?
क्या नाम है उसका…..
क्या किसी ने देखा है उसे….
कौन है वो….–

©® हरिबाबू ‘ हरि’

Language: Hindi
3 Likes · 1 Comment · 483 Views
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