जिंदगी की फितरत
है शाश्वत कुछ नहीं जग में
सबकुछ बदलना पड़ता है
कभी तेज दौड़नी होती है रेस
कभी देर तक ठहरना पड़ता है
कभी बड़े अरमान से करते है कुछ
कभी कुछ बे मन से करना पड़ता है
कभी मिल जाते है कुछ अजीज लोग जीवन में
कभी एक शख्स की खातिर बोहोत तड़पना पड़ता है
मुस्कुराना पड़ता है कभी गम में
तो कभी ख़ुशी में भी आँसू आते है
कभी लोग देते है घाव बोहोत गहरा सा मन को
कभी लोग बड़े प्रेम से मरहम भी यहाँ लगाते है
कभी हासिल हो जाती है मंजिल चार ही कदम पर
कभी मंजिल की तलाश में दर दर भटकना पड़ता है
ये बातें नियत नहीं कुछ भी
मेरी जिंदगी की फितरत है इसे पल पल बदलना पड़ता है
जीवन है ऐसा ही ‘अमित’
यहाँ स्वतः गिर कर सम्भलना पड़ता है
– अमित पाठक ‘शाकद्वीपी’
(बोकारो , झारखण्ड)
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