जिंदगी का सच
जिंदगी के हंसी लम्हों का अंत युं अचानक ही हो जाता हैं,
जहां की नज़रों में पा लेता कुछ पर अपनी नज़रों में सब छोड़ देता है,
हर भूल भुलैया को पार कर जो जिंदगी अपनी आसान बनाता है,
उसी जिंदगी के एक मोड़ पर आकर वो घुटने टेक देता है,
आदर्श माना जिसको अब तक उसके एक कदम से जमाना स्तब्ध रह जाता हैं,
अटकलें लगाते लोग बहुत पर उसके अंदर क्या चल रहा यह कोई जान न पाता है,
महफिलें सजाई जिसके बिन हमेशा से इस जहां में सभी ने,
अब जमाने भर की महफिलों में उसी का जिक्र सुनाई देता है,
जीते जी हमारे हर कदम पर सवालिया निशान जो खड़ा करता जमाना,
वो ही हमारे मरने के बाद समुंद्र से गहरी अच्छी बातों को याद करता है,
अंधेरों से लड़कर जो ठानते रोशनी में अकेले सफर तय करने की हम,
साथ आकर उसी रोशनी में खुद को हमारे भरोसे के काबिल बनाता है,
चलते चलते छोड़ देता वो साथ हमारा न जाने किन तस्वीरों को देखकर,
फिर भरोसा तोड़कर हमें अकेले ही सफर तय करने की हिदायत शान से देते है,
टूटता भरोसा एक बार भी हमारा तो फिर किसी पर भरोसा न करने की ठानते है,
पर जब बोलता कोई दो अच्छे बोल हमसे तो फिर भरोसा करने की गलती कर बैठते हैं,
सोचते हर बार कोई एक जैसा नहीं होता इस जहां में कुछ अच्छे लोग भी होते हैं,
बस इसलिए हम दुनिया की नज़रों में पागल की फेहरिस्त में शामिल होते हैं,
पत्थर बनकर जब हम करते हैं बेपरवाह हो आगे बढ़ने की कोशिश,
तब खुदा को छोड़ सब हमें तराशने को यहां तैयार होते हैं,
नहीं बदलते जब हम किसी के लाख कोशिशों पर भी,
तब दुनिया की नज़रों में अकड़ से खड़े पेड़ की तरह हम बन जाते हैं।