Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Oct 2022 · 2 min read

जिंदगी का एकाकीपन

जिंदगी का एकाकीपन
(एक पागल की मनोदशा)
छन्दमुक्त काव्य
~~°~~°~~°
जिंदगी का एकाकीपन,
न अनाथालय न वृद्धाश्रम।
सड़क किनारे बने फुटपाथ पर ,
फटे पुराने मटमैले वस्त्रों में लिपटा ,
अधेड़ उम्र का एक व्यक्ति,
बातें करता पंचतत्वों से।
देख रहा खुले नेत्र से अपरिमित नभ को ,
याद करता ,
बीते वक़्त का कारवाँ ,
जो तुरंत धुमिल हो जाता उसके जेहन से।
ऐसा लगता जैसे इन आंखों ने,
अतीत में कुछ देखा ही नहीं।
कभी गुपचुप शांत बैठा ,
तो कभी झल्लाए स्वर में कोसता
अपने भाग्य को।
मन में व्यापत सूनापन ,
दिल को कचोट रहा था।
याद करके,
संवेदनाओं की हत्या से उपजी ,
अभिजात वर्ग की वो खौफनाक हँसी ,
जिसने उसके दिलों दिमाग को
विक्षिप्त कर दिया था।
जिन अपेक्षाओं के बल पर,
अपने हौसलों को जिन्दा रखा था उन्होंने।
उसके बिखर जाने का गम,
उसे खल रहा था।
मस्तिष्क का ज्यादा संवेदनशील होना भी,
आज के जमाने में एक बुराई से कम नहीं।
सब कुछ तो किया था उसने,
अपनों की अच्छी परवरिश के लिए ,
ताकि समाज में रुतबा कायम रह सके।
पर वही समाज अब झाँकता तक नहीं ,
कहता पागल हो गया बेचारा ,
अपनी जिम्मेदारियों को ढोते-ढोते।
एक दिन मरेगा इन्हीं सड़कों पर ,
तो कोई पहचानेगा तक नहीं।

देखो तो आज सड़क पर कितनी चहल-पहल है ,
त्योहारों में लोग सज धज कर ,
कितने चहक रहें हैं।
सपनें संजोये अरमानों का पुलिंदा लिए ,
मुट्ठी में कैद कर लेना चाहते हर खुशी को।
पर वो पागल अजीब शांति मन में लिए ,
एक बड़े पत्थर पर सिर टिकाए,
निहारता उन सबको…
कहीं उनमें से कोई उनका सगा तो नहीं।
खैर मस्तिष्क की हलचलें ,
अब उसे ठीक से सोचने भी कहाँ देती।
बस शुन्य भाव चक्षुओं का सामना,
शुन्य क्षितिज से होता बारम्बार टकराता आपस में।
फिर रौबदार दाढ़ी-मूंछ पर हाथ फेरता वह सोचता_
पूर्ण पागल बन जाना भी ,
इस युग के लिए कितनी बड़ी उपलब्धि है।
नहीं तो अर्द्धपागल तो घरों में ,
अक्सर कैद रहते हैं…!

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि –२६ /१०/२०२२
कार्तिक,कृष्ण पक्ष ,प्रतिपदा , बुधवार
विक्रम संवत २०७९
मोबाइल न. – 8757227201
ई-मेल – mk65ktr@gmail

Language: Hindi
5 Likes · 598 Views
Books from मनोज कर्ण
View all

You may also like these posts

जिंदगी में जब कोई सारा युद्ध हार जाए तो उसे पाने के आलावा खो
जिंदगी में जब कोई सारा युद्ध हार जाए तो उसे पाने के आलावा खो
Rj Anand Prajapati
टुकड़ा दर्द का
टुकड़ा दर्द का
Dr. Kishan tandon kranti
*सीखो जग में हारना, तोड़ो निज अभिमान (कुंडलिया)*
*सीखो जग में हारना, तोड़ो निज अभिमान (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
कांटें हों कैक्टस  के
कांटें हों कैक्टस के
Atul "Krishn"
विसर्जन
विसर्जन
Deepesh Dwivedi
सौन्दर्य
सौन्दर्य
Ritu Asooja
बंधन यह अनुराग का
बंधन यह अनुराग का
Om Prakash Nautiyal
खेल नहीं
खेल नहीं
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
फसल
फसल
Bodhisatva kastooriya
बेदर्द ज़माने ने क्या खूब सताया है…!
बेदर्द ज़माने ने क्या खूब सताया है…!
पंकज परिंदा
तुम..
तुम..
हिमांशु Kulshrestha
*अब तो चले आना*
*अब तो चले आना*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
फ़ेसबुक पर पिता दिवस
फ़ेसबुक पर पिता दिवस
Dr MusafiR BaithA
रहो तुम स्वस्थ्य जीवन भर, सफलता चूमले तुझको,
रहो तुम स्वस्थ्य जीवन भर, सफलता चूमले तुझको,
DrLakshman Jha Parimal
Humanism : A Philosophy Celebrating Human Dignity
Humanism : A Philosophy Celebrating Human Dignity
Harekrishna Sahu
- बस एक मुलाकात -
- बस एक मुलाकात -
bharat gehlot
प्रकृति है एक विकल्प
प्रकृति है एक विकल्प
Buddha Prakash
3174.*पूर्णिका*
3174.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
गीत- जहाँ मुश्क़िल वहाँ हल है...
गीत- जहाँ मुश्क़िल वहाँ हल है...
आर.एस. 'प्रीतम'
कठपुतली
कठपुतली
Chitra Bisht
आ ख़्वाब बन के आजा
आ ख़्वाब बन के आजा
Dr fauzia Naseem shad
निराला का मुक्त छंद
निराला का मुक्त छंद
Shweta Soni
की मैन की नहीं सुनी
की मैन की नहीं सुनी
Dhirendra Singh
कलश चांदनी सिर पर छाया
कलश चांदनी सिर पर छाया
Suryakant Dwivedi
* मिट जाएंगे फासले *
* मिट जाएंगे फासले *
surenderpal vaidya
पहले आसमाॅं में उड़ता था...
पहले आसमाॅं में उड़ता था...
Ajit Kumar "Karn"
At the end of the day, you have two choices in love – one is
At the end of the day, you have two choices in love – one is
पूर्वार्थ
- कवित्त मन मोरा
- कवित्त मन मोरा
Seema gupta,Alwar
प्यार ऐसा हो माता पिता के जैसा
प्यार ऐसा हो माता पिता के जैसा
Rituraj shivem verma
मजदूर है हम
मजदूर है हम
Dinesh Kumar Gangwar
Loading...