जिंदगी और मौत
मैं अपनी जिंदगी को साथ लेकर
चलने का प्रयास करता
वही मौत भी
मेरी जिंदगी से
मिलने का दुस्साहस करती है
और मैं मूक दर्शक बनकर
उन दोनों के बीच आभासित
संघर्ष को देखता रहा
कभी-कभी तो आश्चर्य होता है
इनके रंग रंग देखकर
चेतना जागृत होकर कह उठती है
कि जिंदगी स्वयं एक अनुभव है
जिसे अक्सर लोग भूल जाते हैं
पर मौत तो अनुभव से परे
यथार्थ बोध की वह दुखद अनुभूति है जो चिंतन के क्षण में सुखद कल्पना में जाकर परिवर्तित हो जाती है
@ओम प्रकाश मीना