जिंदगी एडजस्टमेंट से ही चलती है / Vishnu Nagar
[हमारे समय के जरूरी एक कवि, प्रसिद्ध कवि विष्णु नागर की अद्भुत कविता, हर समय, हर समाज को संबोधित करती हुई। सच्चे अर्थों में कालजयी रचना]
जिंदगी एडजस्टमेंट से ही चलती है
उसी से नौकरी मिलती है, पदोन्नति होती है
मालिक या अफसर का विश्वास हासिल होता है
दुकान चलती है
एडजस्टमेंट करनेवालों की जिंदगी में
तूफान नहीं आते, बाढ़ नहीं आती
आ भी जाए तो नुक्सान दूसरों का होता है
एडजस्टमेंट करना भला – शरीफ होने का लक्षण है
चरित्र का प्रमाण है
औरत का सुहाग है, तलाक से बचने का शर्तिया उपाय है
एडजस्टमेंट से ही सत्ता मिलती है, देर तक टिकती है
पैसा बनता है, लोकप्रियता मिलती है
हार्टअटैक और ब्रेन हैमरेज से बचने के लिए
डॉक्टर इसकी सलाह दिया करते हैं
एडजस्टमेंट करके चलो
तो दुनिया में अपनी तूती बोलती है
एडजस्टमेंट कर लो तो कुछ भी अश्लील
कुछ भी अकरणीय नहीं रह जाता
कुछ भी बेचैन-परेशान नहीं करता
कुछ भी, कैसे भी करना धर्म सरीखा लगता है
हत्यारे सज्जन पुरुषों में तब्दील हुए दीखते हैं
आदरणीय होकर फादरणीय हो जाते हैं
हक की लड़ाई नक्सलवाद लगने लगती है
नफरत फैलाना संस्कृति के प्रचार-प्रसार का
अभिन्न अंग मालूम देता है
एडजस्टमेंट समय की पुकार है
शास्त्रों का सार है
एडजस्टमेंट करना सेल्फी लेने जितना आसान है
एडजस्टमेंट हर शहर का महात्मा गाँधी मार्ग है
एडजस्टमेंट कंडोम के समान है
जिसे पहनकर अपने को ब्रह्मचारी सिद्ध करना आसान है
एडजस्टमेंट 2002 के बाद का
सत्य है, शिव है, सुंदर है
एडजस्टमेंट का पुरस्कार मिलकर रहता है
भारत माँ के सच्चे पुत्र होने का सौभाग्य मिलता है
और कुछ हो न हो, मगर, देश का विकास होकर रहता है
अरे विकास, विनाश नहीं, विकास!
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