“””जिंदगी अपनी जी”” गजल/गीतिका
है मौत का सबको पता, तभ भी दूजो को रहा सता।
बता बता रे इंसान,क्यों कर रहा तू यह खता।।
जिंदगी अपनी जी,रस प्रेम का पी।
भरोसा क्या ?मुरझा जाए,कब सासों की लता।।
कर्म का कारोबार फैला, बन जा इसका चेला
मन बाजार से मितवा, पर्दा अहम का हटा।।
दिन चार ही ठिकाना है, निश्चित ही जाना है।
पढ़ मानवता का पाठ, शुक्रिया इसका जता।।
राजेश व्यास अनुनय