जानो मुझको बस इंसान
सच हो सपनों की मुस्कान
पंखों को मेरे मिले उड़ान
व चाहूँ मैं अतिशय ध्यान
जानो मुझको बस इंसान|
दिवस विशेष का देकर दान
क्यों करते मन मेरा म्लान
चाहूँ इतना भर सम्मान
जानो मुझको बस इंसान|
देवीतुल्या न मुझको जान
वहन कठिन,यह लेता प्राण
समझी यह षण्यन्त्र महान
जानो मुझको बस इंसान|
भ्रम में हैं सब जन अंजान
नारी लो तुम मन में ठान
न बनो पशु,न देवी महान
जानो खुद को बस इंसान|
✍लेखिका हेमा तिवारी भट्ट✍