***जाने वालों को कौन रोक पाया है***
***जाने वालों को कौन रोक पाया है***
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जाने वालों को भला कौन रोक पाया है,
लोगो ने तो बिछड़ों पर मातम मनाया है।
चंद सांसों की मिलती नहीं उधारी कहीं,
जीना झूठा ही सही मौत का सरसाया है।
धन दौलत और हुस्न भरी हया खजाना,
कफ़न के नीचे दफन कर के लुटाया है।
क्यों अपनों के लिए मरते रहते रात दिन,
जाने के बाद अपनों ने दिल से भुलाया है।
उठ भी जाओ ना क्यों सोये हो मनसीरत,
गहरी नींद में सो रहों को नहीं जगाया है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)