जाने दो माँ
रानी अब हो गयी है सयानी
वो अब किसी की न सुनती
जो काले काले अक्षर न चिन्हती
अब उन अक्षरों को ही अपना पहचान कहती
रानी अच्छी लड़की है
पड़ी लिखी भी है
पर जिद्दी है
माँ से एक दिन कहती है
मैं कलकता जाऊंगी
काम करूँगी नाम करूँगी
पर कूड़ा करकट मैं न करूँगी
ये मुझे न आता
मैं कलकता से ढेर
पैसे भेजाऊंगी
पर माँ तो माँ है
माँ का दिल जाने कहा
पैठा रहा
जब कोई पड़ोसन रानी
की जिद्द पे कहती
बेटी की जात रानी
उपर से सयानी
नादान है अभी रानी
तुम न दिखाओ नादानी
रानी कहती है
मैं कलकता न जा पायी
तो मैं कुछ न खाऊँगी
न बोलूँगी घर के किसी कोने बैठे रहूँगी
मौन रहकर अपने
जिद्द पे अड़े रहूँगी
माँ तुम ही तो कहती थी
पड़ोगी लिखोगी तो बनोगी रानी
नहीं तो ब्याह किसी
लूंगे गूंगे से हो गया
तो पछताके भी क्या
करोगी रानी
सुन के माँ के आँखों
से आँसू छूट गये
हृदय को स्पर्श किया वीणा
ने बाण के जैसे
रानी अपने राह से
न हटी
माँ भी बाध्य
न बन सकी