*जाने क्या-क्या सोचकर, ससुराल जाती बेटियाँ(गीतिका)*
जाने क्या-क्या सोचकर, ससुराल जाती बेटियाँ(गीतिका)
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(1)
जाने क्या-क्या सोचकर, ससुराल जाती बेटियाँ
प्यार मिलता है अगर, तो खिलखिलाती बेटियाँ
(2)
बेटियों को कर तो देते हैं विदा माँ- बाप, पर
रोज सपनों में उन्हें, अपने बुलाती बेटियाँ
(3)
भाग्यशाली लोग हैं वे, जिन्दगी-भर के लिए
रूप में बहुओं के जिनके, घर में आती बेटियाँ
(4)
साथ में बेटों के जब, माँएँ पढ़ातीं बेटियाँ
अधखिले कोमल सुमन-सी, मुस्कुराती बेटियाँ
(5)
सास से पूछो जरा, तुम भी कभी तो थीं बहू
फिर किसी के घर से आई, क्यों सतातीं बेटियाँ
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रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451