***जाने कैसे ये हादसा हो गया***
***जाने कैसे ये हादसा हो गया***
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जाने कैसे ये हादसा हो गया,
अपनों में ही झट लापता हो गया।
मौका ये कैसा आ गया दरमियाँ,
हम दोनों में ही फासला हो गया।
सुलझा सा उलझा क्यूं रहूँ सोचता,
उलझा-उलझा सा मामला हो गया।
कोई भी तो हर को न पाया समझ,
किस को ज्यादा फायदा हो गया।
मुख से मुखरित शब्द है बाण सा,
ऐसा कहना ही कायदा हो गया।
कड़वा सा लहजा बोल जो बोलना,
फीका-फीका सा जायका हो गया।
मनसीरत जीवन में रहा देखता,
छोटा क्यो सारा दायरा हो गया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)