जाने ऐसा क्यों होता है ? …
गुजर जाने से इंसान के उसकी याद आती है बहुत ,
मगर जीतेजी उसे नजर अंदाज किया जाता है बहुत ।
वो शख्स जो कल तक तो हमारे बीच में मौजूद था ,
हमें मालूम ही नहीं के उसमें खूबियां भी थी बहुत ।
अब कहां से ऐब छुप गए और खूबियां उजागर हो गई,
हमने जिसपर उंगलियां तोहमत की उठाई थी बहुत ।
वो सारे मुहोबत और तशद्दुत के बेशकीमती एहसास ,
तब कहां थे? जिनके लिए वो तरसा करता था बहुत ।
यादें उसकी ज़हन में कहकशा सी कौंधती है जब ,
उस रोशनी में उसका मासूम चेहरा दिखता है बहुत ।
जीतेजी हमने तो उसे कुछ नहीं दिया आहों के सिवा,
वही आहें और आहें हमें अपनी सौगात दे गया बहुत ।
कौन जाने यह मुहोबत है भी या खुदगर्जी रिश्तों की ,
जाने के बाद उसकी इस तरह कमी खलती है बहुत।
यह मतलब की दुनिया है “अनु” मतलब ही अहम है ,
जज़्बात के तराजू में मतलब की कीमत है बहुत