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24 Jul 2022 · 1 min read

जाना होगा सबको उस पार

लेकर दुर्लभ मानव जीवन
आशीष प्रभु का भर अंतर्मन
मानव आता ज्योति जलाने
पथ का सारा तिमिर मिटाने
जीवन का करने उपयोग
जन कल्याण का सुखद प्रयोग
पर जाते हैं सारे प्रण भूल
कामनाएं करते हैं कबूल
अंतहीन तृष्णायें समाता
वैभवता में कमी ना पाता
आत्मचेतना थक सा जाता
समय सदा चलता ही जाता
बचपन जाता बुढ़ापा आता
आँख-कान की घटती क्षमता
हाथ-पैर की सामर्थ्य-हीनता
देख विवशता रो पड़ता है
जाने की जब घड़ी होता है
सत्य जागता तब अंतर में
जीवन के उन शेष प्रहर में
मंजिल जिसे समझ बैठा था
उसी से नेह का नाता टूटा था
श्रेष्ठहीन कर्म किये धरा पर
सीख ना पाये प्रेम की आखर
अस्त-व्यस्त जीवन अपनाकर
सद्चिन्तन निज धर्म भुलाकर
आये कितने क्षण और अवसर
सुन नहीं पाये अंतर के स्वर
लूटता रहा वैभव मनमाना
बना रहा हरदम अनजाना
लोभ आचरण से निकालकर
मोह का आवरण उतार कर
तोड़ दर्प का अलंकार
जाना होगा सबको उस पार.
भारती दास ✍️

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 231 Views
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