जानती हूँ मैं की हर बार तुझे लौट कर आना है, पर बता कर जाया कर, तेरी फ़िक्र पर हमें भी अपना हक़ आजमाना है।
ये बारिशें जो नज़ारों को धुंधला कर जाती हैं,
मुझसे पूछे बिना हीं, मेरी आँखों से टकराती हैं।
मेरे सुकून के हक़ में, तू छिपाता है बातें कई,
पर तेरे जाने की आहटें, मेरी रूह को छू जाती हैं।
इंतज़ार में थम जाती है दुनिया और रुक जाती हैं सासें,
फिर इबादतों में तेरे लौट आने की दुआएं दुहराती हैं।
कभी-कभी शिकायतें खुद की शख्सियत से लड़ आती हैं,
जिसे बनना था तेरी ताकत, वो क्यों खुद में कमजोर सी नज़र आती है।
क्यों परिस्थितिया ऐसे, हर पल में हमें आजमाती है,
रात के सन्नाटों में तुझे, खतरों की ओर ले जाती है।
जानती हूँ मैं की हर बार तुझे लौट कर आना है,
पर बता कर जाया कर, तेरी फ़िक्र पर हमें भी अपना हक़ आजमाना है।