“जादूगर”
सुनो जादूगर
खिल उठते हैं मेरेे होंठ,
तुम्हारी चाहत की चाशनी में डूब,
गुलाब की सुर्ख पंखुडी से,
जब भी तुम लिखतेे हो,
मेरे अधरोष्ठों पर,
अपने प्रेम की रसीली कवितावली
और मेरे माथे को चूम,
गहरे आलिंगन में,
करते हो अपने नाम का
मेरे गालों पर प्रेमिल हस्ताक्षर!
और अब तुम कभी,
विलग नहीं होने दोगे मुझे खुद से
पतझड़ हो या वसन्त
हमारी राह इक होगी,
चाह एक होगी बोलो
तुम्हारा वादा है ना जादूगर !!””
किरण मिश्रा
13.2.2017