जादुई फल मांगता हूँ ……………….(ग़ज़ल )
जादुई फल मांगता हूँ ……………….(ग़ज़ल )
ऊब गया हूँ बेजुबानो की भीड़ में रहकर तन्हा
अब अकेले में जश्न के लिए दो पल मांगता हूँ !!
पत्थर सा बन गया हूँ देखकर बेदर्द जमाने को
नयनो के समुन्द्र से अंजुली भर जल माँगता हूँ !!
बर्बाद हो गया हूँ बहकर बदलाव की इस लहर में
रास नहीं आता आज, बीता हुआ कल मांगता हूँ !!
नफ़रतो के साये में खौफजदा है हर एक रूह
बदल जाए नजरिया आतंक का हल मांगता हूँ !!
हर तरफ खिले हो गुलशन में गुल मोहब्बत के
नीरस जिंदगी में अब वो हसीन पल मांगता हूँ !!
कोई दौलत ना जागीर चाहिये “धर्म” को यारो
मिटादे जहन से नफरत, वो जादुई फल मांगता हूँ !!
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डी. के. निवातियाँ ____________@@@