जाते जाते कुछ कह जाते —
पंक्ति आधारित सृजन-
जाते-जाते कुछ कह जाते-
गीत सृजन–
***************************************
विरह वेदना उर में जागी, दिल की पीड़ा तुम सुन पाते।
जाते-जाते कुछ कह जाते,ओढ़ कफन खामोश न जाते।
वादों का सुरमय संगम था, झूठे अब क्यों मुझे रुलाते।
जाते-जाते कुछ कह जाते,ओढ़ कफन खामोश न जाते।
तन में उपजी कैसी व्यथा,सुहाग की कलियाँ मुरझाई
पग पग पर मेरे शूल बिछे, देवता से क्यों मिली विदाई।
सपने मधुर टूटकर बिखरें, सतरंगी संगीत सजाते।
जाते-जाते कुछ कह जाते,ओढ़ कफन खामोश न जाते।
हरियाली से महका आँगन, रुनझुन पायल छन-छन छनकी।
खुशियों से चहका था दामन,रंगी चूड़ियां खन-खन खनकीं।
विमुख हो गये क्यों जीवन से, उलझा जीवन सुलझा पाते।
जाते-जाते कुछ कह जाते,ओढ़ कफन खामोश न जाते।
सागर की लहरों सा जीवन,सुखमय फूलों सा हरषाया।
साँसों की डोरी का नगमा,प्रेमिल साज पर था सजाया।
साथ गुजारे जो पल हमने, वो सौगातें देकर जाते।
जाते-जाते कुछ कह जाते,ओढ़ कफन खामोश न जाते।
आज नभ भी रोया संग में,घन बदरी ने जल बरसाया।
तितली गुमसुम अलि भी गुपचुप,पुष्प चमन ने नहीं खिलाया।
भीगा- भीगा सारा जहान, वीरानी से जोडें नाते।
जाते-जाते कुछ कह जाते,ओढ़ कफन खामोश न जाते।
✍️ सीमा गर्ग मंजरी
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश।