जाता नहीं ( शीर्षक )
कभी-कभी सोचता हूँ चुप ही रहूँ
मगर चुप मुझसे रहा जाता नहीं…
हो रहे ये जघन्य अपराध तमाम
मुझसे दुःख सहा जाता नहीं
कवि हूँ विचलित हो उठता है मन
न न करके थामता हूँ खुद को मगर
बिना लिखे कुछ कहा जाता नहीं
दिल नादाँ है शायद फ़िसल जाता होगा
क्या गुज़रती है दिल पे कहा जाता नहीं
कई देखे हैं मैंने दिल के कठोर यहाँ
अकेले में कई दफ़े उनसे भी रहा जाता नहीं
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-.. #बृजपाल सिंह