दशरथ मांझी होती हैं चीटियाँ
मेरे आवास परिसर में चीटियों ने
बालू का एक ज़खीरा खड़ा कर रखा है
जो उनके
कद एवं अनथक अप्रतिहत श्रम के हिसाब से
कम नहीं है एक पहाड़ बनाने से!
इस गरज से
दशरथ मांझी होती हैं चीटियाँ!
फर्क है मगर
चींटियों के दशरथ माँझी होने में
और साबुत दशरथ माँझी होने में
चींटियाँ तो सभी होती हैं दशरथ मांझी
मगर स्वार्थ में, स्वभाव में
जबकि दशरथ माँझी ने
स्वार्थ से चलकर परमार्थ गढ़ा
दैहिक प्रेम से आगे बढ़कर
समाज प्रेम में पर्वत से टकराया वह
उत्तुंग सम्बल संकल्प लिए
उसे ढाने का
ढा कर रास्ता बनाने का
अथक श्रम करती चीटियाँ
लीक पर चलती हैं
जबकि अलीक चले दशरथ मांझी
लीक बनाई इक नई
पहाड़ से ऊंचा संकल्प
कोई भरसक ही करता है
करता भी है तो
सदियों में सिर्फ एक होता है
पहाड़-प्रश्नों को जमींदोज कर
अपने संकल्पों को
जमीं पर उतारने वाला
दशरथ मांझी।