जाग उठ अब है ! नारी
जाग उठ अब है! नारी,
तू कहाँ किसी से हारी,
तुझमे क्षमता है प्रबल ,
अबला नही ,है सबल,
तू धरा का है रूप,
दुर्गा का है स्वरूप,
कर धारण त्रिशूल,
फूल से बन शूल ,
घूम रहे दुःशासन,
छद्म वेश में जन,
यह कलयुग घोर,
नही इसका छोर,
किसे तुम पुकारोगी,
किसका मन देखोगी,
यहाँ कृष्ण न आएंगे,
नयन तुम्हारे थकेंगे ,
आँसुओ को दे रोक,
त्याग अपना शोक,
उठा खड्ग और ढाल,
लगा तिलक तू भाल,
जो है खुले भेड़िये,
उनको न तू छोड़िए,
दिखा कर अपनी शक्ति,
मिटा दे उनकी हस्ती,
।।।जेपीएल।।।