जागो तो पाओ ; उमेश शुक्ल के हाइकु
हिसाब किताब में कच्चे हम
जन्म से झेल रहे तमाम सियासी मनमानियांं
संसद पे हाबी पूंजीपति, माफिया
चुनाव की घड़ी में बेपरवाही
धर्म,जाति,भाषा, क्षेत्र की देते दुहाई
बोया बबूल कांटों से मिताई
सालों बाद भी हालात दयनीय
कोठियां, कार्रें जुटाने में व्यस्त सभी माननीय
उत्सवों में फिर भी वे आदरणीय
जब तक हिसाब है कमजोर
हक हुकूक पर मौज मनाएंगे लोग और
जागो तो पाओ अन्यथा पछताओ