जागो जनता
भारत भू में राष्ट्रधर्म का उत्सव है आया,
जिसमें सम्पूर्ण राष्ट्र का हित है समाया।
सब मिल अपना कर्तव्य निभाऐं,
मतदान हेतु हर एक जनता जाऐं।
सुविधा पाना हमारा है , यदि अधिकार,
कर्तव्य बोध होना है, उसका श्रृंगार।
मत सोचो बाहर है ,अतिशय गर्मी,
कर्मविहीन को, कह दे कोई, पौरुष धर्मी?
सर्द-गर्म प्रकृति का है नियम पुराना,
फिर क्यों?कर्तव्य पथ को बिसराना।
सर्द-गर्म की परिभाषा जा पूछ किसानों से,
विरक्त होते कभी अपने खेत खलिहानों से।
जेठ की धूप हो, चाहे हो पूस सी मास,
कभी न थकते, कभी न रुकते, न जाते कल्पवास।
है पूछना तुझे तो जा पूछो दूर खड़े सीमा रक्षक से,
बर्फ ओढ,कट्टार की तेज धार पर, लड़े देश के भक्षक से।
है मिला जीवन को एक सुनहरा मौका,
फिर ,अपने ही देश को दें हम क्यों धोखा।
लोकतंत्र के स्वर्णिम युग के, अमृत काल में,
विविध वर्ण के पुष्प ,हम जुड़ जाऐं एक माल में।
अपने प्रत्याशी को ,निज मत से करें निहाल,
चूक समय, फिर न रहे हृदय में कोई मलाल।
एक- एक जन में, जन से, जागृत हो जाऐं।
कर्तव्य बोध कर, अखण्ड भारत का ओजस्व बढ़ाऐं।
उमा झा🙏🙏