जाऊं भी तो कहाँ
जाऊं भी तो कहाँ????
जाऊं भी तो कहाँ
कुछ समझ न आये
कभी माँ की कोख में
मार डालते….
तो कभी ज़िंदा रखने की
कीमत मांगते….
हर वक़्त ताक में
रहते इंसानी भेष में
छुपे जानवर…
घर लौट के आना
भी बन गया सवाल…
कैसे खुद को बचाऊं
कुछ समझ न आये……
देवी बना के कभी पूजते
तो कभी मुझे
मेरे अस्तित्व को.…
करते तार तार
कौन हूँ मैं?????
आखिर कैसे खुद को
ये समझाऊँ मैं….
कुछ समझ न आये…..
बेटी है अनमोल,
कहते नहीं थकने बाले
इस देश में…
बेटी होना क्यों गुनाह है????
कुछ समझ न आये….
कहाँ से लाऊँ अपने लिए
एक नया जहाँ
कुछ समझ न आये
जाऊं भी तो कहाँ
कुछ समझ न आये
सीमा कटोच