ज़िन्दगी को कर लिया है डर में क़ैद
ग़ज़ल
ज़िन्दगी को कर लिया है डर में क़ैद।
इक वबा ने कर दिया है घर में क़ैद।।
हो गये सैयाद के सब डर में क़ैद।
ख़ुद परिंदे हो गये पिंजर में क़ैद।।
क़ैदियों सी ज़िंदगी हम जी रहे।
घर से निकले हो गये दफ्तर में क़ैद।
एक आज़र का हुनर भी देखिए ।
कर दिया है हुस्न को पत्थर में क़ैद।।
वो ज़माने से बचाता फिर रहा।
एक वालिद की है जां दुख़्तर में क़ैद।।
इक सुख़नवर का सुख़न भी ख़ूब है।
कर दिया सागर को इक गागर में क़ैद।।
ये तेरी ज़ुल्फें हैं या ज़ंजीर हैं।
हम तो इनमें हो गये पल भर में क़ैद।।
था हसीं मंज़र तो हमने यूँ किया।
कर लिया मंजर वो इक पिक्चर में क़ैद
कह दी हमने भी “अनीस” अब इक ग़ज़ल ।
क़ाफ़िया की दी गई थी अर में क़ैद।।
– अनीस शाह “अनीस”