ज़िंदा है झील
ज़िंदा है झील
—————————
मर गई थी
बरसों पहले
फिर से ज़िंदा
हो गई झील
बरसे थे
घन
झमाझम
जम के
झील में पानी
लबों तक भर के
बस कमी थी
बतख़ नहीं थी
ले गये शिकारी
खाया जी भर के
बड़े मियां ने
उड़ाई फ़ाख्ता
छोटे मियाँ ने
बनाई जरा ख़स्ता
नजर नहीं आती
न बतख़ न फ़ाख्ता
ज़िंदा तो हो गई झील
आत्मा रह गई अलबत्ता
नजर नहीं आती
मछली
फुदक फुदक कर
नाचती थी
मछली
जाल फैंका
मछुआरे ने ऐसा
फिर न निकल पाई
जाल से मछली
ज़िंदा हो गई झील
बची नहीं मछली
उग आई है
जलकुंभी
इधर उधर
काई जमी है
इस पत्थर
फिसलन बनी हुई है
पैर उधर मत धर
मेंढक हैं करते
टर्र टर्र टर्र टर्र
लगता है जैसे
ज़िंदा है झील
मगर मर मर के
—————–
राजेश’ललित’