ज़िंदगी
अस्त व्यस्त सी है जिंदगी
जी रहे है
कभी खुशी की बूंदे
तो कभी गम के आँसू
पी रहे है।
कभी ठहर सी जाती है
तो कभी तूफान बन जाती है
ये जिंदगी की पहेली ही अजीब है
कभी दुआ तो कभी बद्दुआ बन जाती है।
कम ही बहती नदी यहाँ खुशी की
गम का महासागर दिखता है
काँटो से पथ सजा पड़ा है
कौन यहाँ पे टिकता है?
गैरों से भला क्या करें शिकायत
अपनों से भी दर्द मिलता है
पर तू ठहर न जाना ऐ दोस्त
क्योंकि पंक में ही पंकज खिलता है।
माना ज़िंदगी बड़ी उलझन है
मुश्किल करना उसकी सुलझन है
पर ज़िद्दी हम भी कम नहीं है
गम का भी हमें गम नहीं है
टूटते फूटते, दौड़ते, सरकते
जा रहे है
मंजिल पर न ही पहुंचे सही
पर मंजिल के लिए मरे जा रहे है।
-राही