ज़िंदगी के लिए
क़फ़स के ख़ातिर ये जां है खारिज़ खुदकुशी के लिए
कोई दुआ असर हुई या’नी यहाँ इस ज़िन्दगी के लिए
मैंने जीना छोड़ दिया था म’गर लिहाज़ा क़लम के वास्ते
कपड़े पसार आया उसपे जो टांगी थी रस्सी फाँसी के लिए
तुम कहते हो तुम्हें लगता है तो मान लूँगा फिर कभी पर
मैं लिखता नहीं ग़ज़ल शान-ओ-शौकत, घरवाली के लिए
फैला है भूखमरी गाँव – गाँव, शहर- शहर उतना ही ज़्यादा
जब जब सरकारें बनी बिगड़ी फ़क़त मिटाने नादारी के लिए
मन ना भी है फिर भी जमा कर रहा हूँ आँसू रोज़ किस्तों पे
क्या बताऊँ यार उकता गया हूँ दर्द अदा कर मजदूरी के लिए
@कुनु