ज़िंदगी के मर्म
सुख-दु:ख की धूप छांव है
ये ज़िंदगी ,
कभी सूरज सी प्रचंड ,
कभी चंद्रमा सी शांत है ,
ये ज़िंदगी ,
कभी हर्ष का उत्कर्ष ,
कभी कल्पित धारणा का उत्सर्ग है
ये ज़िंदगी ,
कभी अकिंचन निरीह सी,
कभी प्रखर निर्भीक सी है
ये ज़िंदगी ,
कभी अहं बोधग्रस्त ,
कभी आत्म- चिंतनयुक्त सी है
ये ज़िंदगी ,
कभी हताशाओं का सागर ,
कभी आशाओं का आकाश है
ये ज़िंदगी ,
कभी अक्षम पराधीन सी ,
कभी सक्षम स्वाधीन सी है
ये ज़िंदगी ,
कभी द्वंद का चक्र ,
कभी सरल सहज अर्थ लिए सी है
ये ज़िंदगी ,
कभी छद्मवेश लिए ,
कभी यथार्थ परिवेश लिए सी है
ये ज़िंदगी ,
कभी अज्ञान का निष्कर्ष ,
कभी संज्ञान मर्म लिए सी है
ये ज़िदगी।