ज़िंदगी का सफर
ज़िंदगी का सफर
ज़िंदगी जैसे रुक सी गई है अधर में
पास में न कोई साथी है इस डगर में
अकेले जो आए अकेले ही रहना
साथ हो के भी अकेले सफर है करना ।
रोता है दिल तब शब्द लगे खंजर
बदता है दर्द जब वो रहें बेखबर
जान के भी अंजान बने इस कदर
की बदलने से बात सब जाएँ गे बिसर ।
होता है क्या ऐसे भी कभी
दर्द देता है जो वो जिस को चाहते हो वही
भूल जाने का भ्रम पाल घूमें यूं ही
नादान हम हैं जो तुम्हें पहचाना नहीं ।
साथ अब तक रहे बन के हमसफर
लगता था कि प्यार का ये है असर
पल पल में संग ही लिए फैसले
अब अचानक ही सब गया है बदल ।
साथ हम तो रहे पर गवारा न तुम्हें
अपनी ज़िद्द में ही रहे तुम अजब से खड़े
बात है क्या जो निष्ठुर हुए तुम अभी
सब कुछ कर भी यकायक बन गए अजनबी ।
बात लेने या देने की नहीं इस घड़ी
मिजाज बदले तो बन गई बड़ी
शांत बैठो संभालो तो पड़ पाओ गे
चोट दी है पर समझी नहीं है अभी।
यूं न समझों अकेले ही लिया ये मुकाम
साथ चलते रहे पर किया न बयां
आगे बड के लिए आयाम इस तरह
यूं तुम्हें कि तुम ने किए मेहरबान ।
बेखबर थे कि बदेगा तुम्हारा गुमान
पल में खुद को समझ बैठोगे तुम खुदा
दिख न पाएगा चलता हुआ हमसफर
अकेले चलने की सोच गे यूं हर डगर ।
चेतो अभी तोड़ दो भ्रम सभी
अकेले काट न पाओगे ज़िंदगी का सफर।