ज़िंदगी – एक सवाल
रिश्तों का संसार है ज़िंदगी ये ,
रिश्तों का जंजाल है ज़िंदगी ये ,
कोई हंस रहा है किसी की ज़िंदगी पे ,
किसी पर हंस रही है ज़िंदगी ये ,
कुछ रिश्तों के ताने दे रही है जिंदगी ये ,
कुछ अपनों के माने समझा रही है ज़िंदगी ये ,
कुछ दोस्तों की बातों के नश्तर चुभा रही है
ज़िंदगी ये ,
कुछ अज़ीज़ों की फ़ितरत से दहक रही है
ज़िंदगी ये,
कुछ बे-क़रार, कुछ सज़ा-याफ़्ता सी है ज़िंदगी ये ,
कुछ बेहाल , कुछ बेसाख़्ता सी है ज़िंदगीं ये ,
कुछ ख़्वाबों के अर्श से हक़ीक़त के फ़र्श पर है
ज़िंदगी ये ,
ख़ुद से शुरू , ख़ुद पर ही ख़त्म हो रही है
ज़िंदगी ये।