ज़िंदगी एक पहेली…
कभी है ये उलझी , कभी है ये सुलझी !
कभी बनती शत्रु , तो कभी बनती ये सहेली है !
ज़िंदगी एक पहेली है ।
ग़म से निकलने के बाद , लगती ये एक दुल्हन नई नवेली है !
इसका हाथ पकड़िए , इसका साथ पकड़िए ।
इसके साथ चलिए , ये बिल्कुल अकेली है ।
ज़िंदगी एक पहेली है ।
कभी ये अनचाही , तो कभी ये चहेती है ।
ज़िंदगी बातों – बातों में , बहुत – कुछ कहती है ।
ज़िंदगी एक पहेली है ।
सुलझाने से सुलझेगी ज़िंदगी !
उलझाने से उलझेगी ज़िंदगी !
ये ज़िंदगी एक कठपुतली है ।
ज़िंदगी एक पहेली है ।
हंसाइए इसको , बातें कीजिए इससे ,
यही तो इसकी शैली है ।
ज़िंदगी एक पहेली है ।
✍️सृष्टि बंसल