Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Apr 2024 · 3 min read

ज़हर

मेरे एक मित्र के पिताजी हैं। ज़ाहिर है वयोवृद्ध हैं। किंतु वे अपने पुत्र के साथ नहीं रहते। पुत्र का भी इस संदर्भ में कोई विशेष आग्रह नहीं है। पुत्र के निवास से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर अकेले रहते हैं।वहां उनके स्वामित्व में तीन कमरे हैं। जिनमें से एक में वो स्वयं रहते हैं तथा दो कमरे किराए पर दे रखे हैं। खुद ही बनाते खाते हैं। जब तक पत्नी साथ थी आनंदित थे। अक्सर तीर्थ यात्रा पर निकल जाते थे। पत्नी कमर दर्द से परेशान रहती थी तो उसे पुत्र के पास छोड़ जाते थे। जीवन ऐसे ही गुजर रहा था। जब तक पत्नी थी ठीक था। पत्नी के गुजर जाने के पश्चात अकेलापन खलने लगा किंतु पुत्र को तथा खासतौर से परिवार वालों को उनके बिना रहने की आदत
पड़ चुकी थी। इसलिए वे उन्हें अपने साथ रखने और उनकी टोका टाकी सहने को प्रस्तुत नहीं थे।

अकेलेपन से ऊबकर वे अक्सर अपने पुत्र के यहां एकाध दिन रहने के लिए चले आते।जब भी मुझसे मिलते एक ही बात कहते।
“पवन जी कहीं से मुझे कोई ऐसा जहर लाकर दे दो जिसे खाकर मैं शांति से प्राण त्याग सकूं।”

मेरा ज़बाब रहता ” अकेले हैं , पैसे रुपए की चिंता नहीं। स्वास्थ्य भी ठीक है। अड़ोसी पड़ोसी भी अच्छे हैं। जीवन का आनंद उठाइए।”

वे कहते “बहुत आनंद उठा लिया , पत्नी के जाने के पश्चात अब अकेले रहना रुचिकर नहीं लगता।”

ऐसे ही कई महीनों क्या दो चार बरस तक चलता रहा। वे जब भी मिलते मुझसे जहर मांगते और मैं उन्हें समझा बुझा कर टाल देता।
एक दिन कुछ समस्याओं के कारण मेरा मूड ठीक नहीं था। वे मुझे मिले और फिर वही मांग रखी।
मैं उनके पास बैठा और शांत स्वर में पूछा ” क्या आप सचमुच में जीना नहीं चाहते ? यदि ऐसा है तो मैं आज ही इंतजाम करता हूं। रात को खाना खाने के बाद एक कप गरम पानी के साथ ले लीजिएगा। नींद में ही कब मौत आ जायेगी आपको भी पता नहीं चलेगा।”
मेरे प्रस्ताव पर वे सकपका गए।

” कौन मरना चाहता है। सबको अपनी जिंदगी प्यारी होती है। लेकिन मेरे परिवार वालों की बेरुखी परेशान करती है। इस उम्र में अकेले के लिए खाना बनाना , बर्तन साफ करना बहुत नागवार गुजरता है।पत्नी थी तो तकलीफ नहीं थी। समस्या यह है। जीवन समस्या नहीं है।”

” हूं तो आपको उचित मान सम्मान की आवश्यकता है। दो समय रोटी पानी मिल जाए ये चाहत है।”
” ठीक समझे , यही चाहत है।”
” तो एक काम करिए , आपके पास जो तीन कमरे हैं उन्हे बेच दीजिए , बारह पंद्रह लाख तो आसानी से मिल जाएंगे। यह रकम किसी अच्छे वृद्धा आश्रम के लिए काफी होगी।आप वहां आराम से रह पाएंगे।”

” नहीं , नहीं , वृद्धा आश्रम का मुझे भी पता है। मैं तो पारिवारिक माहौल में रहना चाहता हूं।”

“उसका हल भी मेरे पास है। आप रकम अपने नाम पर फिक्स कर दीजिए। आपको मैं अपने गांव ले चलता हूं। आप मेरे छोटे भाई के परिवार के साथ रहिए। आपको महसूस ही नहीं होगा की आप किसी अजनबी के साथ हैं। जो ब्याज मिलेगा उससे आप का जेबखर्च निकल जायेगा। हां एक काम करना पड़ेगा। फिक्स डिपॉजिट का नॉमिनी मेरे भाई को रखना पड़ेगा। आपके साथ किसी प्रकार का दुर्व्यहार नहीं होगा इसकी गारंटी मैं लेता हूं।”
मेरा प्रस्ताव सुनकर वे ऐसे चुप हुए मानों सांप सूंघ गया। दो चार मिनट तक तो कुछ बोले ही नहीं। वे अगले दस बीस मिनट तक कुछ बोलेंगे ऐसी संभावना भी नहीं लग रही थी।
” क्या सोच रहे हैं ” मैंने उन्हें कुरेदा।
” कुछ नहीं।” धीमी आवाज में ज़बाब मिला।

फिर मैं ही शुरू हो गया ” मैं बताता हूं आपकी क्या चाहत है। आपको सम्मान मिले या न मिले पर आप बार बार अपने पुत्र के यहां आएंगे , अपमानित होंगे , पर आपके पास जो जायदाद , रुपया पैसा है वो अपने नाती पोतों को ही देंगे। आप किसी वृद्ध आश्रम को वो पैसे देकर सम्मान से नहीं जीएंगे और न ही अपनी संतति के अलावा किसी को एक फूटी कौड़ी देंगे। जब आपको मोह माया ने इस तरह जकड़ रखा है तो जीवन से जो प्राप्त हो रहा है उसे स्वीकार करिए और इस जीवन को समाप्त करने के लिए कृपया मुझसे ज़हर मांगना बंद कर दीजिए।”

मुझे भी बाद में पछतावा हुआ की मुझे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी। लेकिन उस दिन के पश्चात मिलना जुलना , नमस्कार , चमत्कार तो शुरू रहा किंतु उन्होंने मुझसे वापस कभी जहर की मांग नहीं की।
Kumar Kalhans

Language: Hindi
59 Views
Books from Kumar Kalhans
View all

You may also like these posts

सपने का अर्थ
सपने का अर्थ
पूर्वार्थ
Shankar Dwivedi (July 21, 1941 – July 27, 1981) was a promin
Shankar Dwivedi (July 21, 1941 – July 27, 1981) was a promin
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
मोर
मोर
विजय कुमार नामदेव
यक्षिणी-9
यक्षिणी-9
Dr MusafiR BaithA
स्वयं अपने चित्रकार बनो
स्वयं अपने चित्रकार बनो
Ritu Asooja
प्रिय, बीत गये मधुमास....
प्रिय, बीत गये मधुमास....
TAMANNA BILASPURI
स्वयं से सवाल
स्वयं से सवाल
Rajesh
उदास हूँ मैं...
उदास हूँ मैं...
हिमांशु Kulshrestha
पूजा-स्थलों की तोडफोड और साहित्य में मिलावट की शुरुआत बौद्धकाल में (Demolition of places of worship and adulteration in literature began during the Buddhist period.)
पूजा-स्थलों की तोडफोड और साहित्य में मिलावट की शुरुआत बौद्धकाल में (Demolition of places of worship and adulteration in literature began during the Buddhist period.)
Acharya Shilak Ram
आकाश और पृथ्वी
आकाश और पृथ्वी
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
..
..
*प्रणय*
.*यादों के पन्ने.......
.*यादों के पन्ने.......
Naushaba Suriya
"कविता के बीजगणित"
Dr. Kishan tandon kranti
ज़िन्दगी से नहीं कोई शिकवा,
ज़िन्दगी से नहीं कोई शिकवा,
Dr fauzia Naseem shad
झकझोरती दरिंदगी
झकझोरती दरिंदगी
Dr. Harvinder Singh Bakshi
कहिया ले सुनी सरकार
कहिया ले सुनी सरकार
आकाश महेशपुरी
श्री कृष्ण भजन 【आने से उसके आए बहार】
श्री कृष्ण भजन 【आने से उसके आए बहार】
Khaimsingh Saini
डॉ0 रामबली मिश्र:व्यक्तित्व एवं कृतित्व
डॉ0 रामबली मिश्र:व्यक्तित्व एवं कृतित्व
Rambali Mishra
"राज़ खुशी के"
ओसमणी साहू 'ओश'
***** शिकवा  शिकायत नहीं ****
***** शिकवा शिकायत नहीं ****
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
महकती नहीं आजकल गुलाबों की कालिया
महकती नहीं आजकल गुलाबों की कालिया
Neeraj Mishra " नीर "
कविता
कविता
Nmita Sharma
दहेज मांग
दहेज मांग
Anant Yadav
जाति
जाति
Ashwini sharma
मुलाज़िम सैलरी पेंशन
मुलाज़िम सैलरी पेंशन
Shivkumar Bilagrami
3830.💐 *पूर्णिका* 💐
3830.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
मैं बहुत कुछ जानता हूँ
मैं बहुत कुछ जानता हूँ
Arun Prasad
रंगों को मत दीजिए,
रंगों को मत दीजिए,
sushil sarna
शिव
शिव
डॉ माधवी मिश्रा 'शुचि'
दोस्ती....
दोस्ती....
Harminder Kaur
Loading...