ज़र्फ़
मुझे कांधों पे उठाना चाहता है
ज़र्फ़ मेरा आजमाना चाहता है
बितानी थी मुझे ज़िंदगी अपनी
मगर वह रात बिताना चाहता है
जुदाई चाहता है वह भी मुझसे
यही तो सारा ज़माना चाहता है
मिज़ाज में ज़रूरी है आजिज़ी
अगर इज्जत कमाना चाहता है
खुद ही फेर लीं हमनें नज़रें अपनी
दाग चेहरे के कोई छुपाना चाहता है
उसने रख दिया है सियासत में कदम
गरीबों का हक़ उड़ाना चाहता है