ज़मीर का सौदा
“जज साहिबा, कोई दम ही नहीं इस केस में।
शीतल शुक्ला ने अपने पति को एक रात पहले धमकाया कि वो ख़ुदकुशी करके उन्हें सबक़ सीखाएँगी …आपने रिकार्डिंग तो देखी ही, जो अब वाईरल भी हो चुकी है नेट पर!
और ये हर रोज़ नई माँग रखने का यानि कि दहेज माँगने का आरोप, जो मृत शीतल के परिजन लगा रहे कमल किशोर के परिवार पर, ये सरासर बेबुनियाद है ! हाँ माना कि जब शीतल बॉलकनी से कूदी तो उसके पति कमल किशोर भी घर पर ही थे। पर उनको तो जब वॉचमैन ने इंटरकॉम पर बताया, तभी पता चला था शीतल की ख़ुदकुशी का!
मेरा मुवक्किल निर्दोष है जज साहिबा !”
( अपनी दलील खत्म कर एडवोकेट अभय शर्मा, पसीना पोंछते हुए, अपनी कुर्सी पर बैठ गए!
उन्होंने जज साहिबा के हाव भाव पढ़ने चाहे पर मामला साफ़ नहीं था …अक्सर ऐसे केस में, फ़ैसला पीड़िता के हक़ में ही जाता है !बस यही सोच सोच वो परेशान हो रहे थे)
जज साहिबा ने, चश्मदीद गवाह और पुख़्ता सबूतों के अभाव में, कमल किशोर को बाइज़्ज़त बरी कर दिया !
कोर्ट के बाहर, अति ख़ुश कमल किशोर, अभय शर्मा को उनकी फ़ीस, नोट के एक बंडल के रूप में दे ही रहे थे कि अचानक शीतल शुक्ला की माँ ने अभय पर धावा बोल दिया, उन्हें कॉलर से पकड़ कई तमाचे जड़ दिए..उनका चश्मा ज़मीन पर गिर पड़ा।
कुछ समझ पाते वो कि तभी..
” कैसा नीच आदमी है रे तू! ज़मीर क्या मर गया तेरा, जो एक लड़की के कातिल को बचा कर कमा रहा ! तुझे तो नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी..!”
(कमल किशोर की ओर घृणा से देखते हुए , वे फिर बोलीं ..)
” ये राक्षस तुझे बेक़सूर दिखता है ? हैं? बोल? बोल न ??
(उसे झकझोरते हुए..
कोई जवाब न पा, खीज कर
फिर वो बोलीं )
“और ये नोट!?
पच जाएगा तुझे ??”
(एक हाथ से कॉलर पकड़े और दूसरे हाथ से बंडल खींचते हुए, शीतल की माँ ने फुँकारते हुए कहा, पर अभय ने बंडल और कसकर पकड़ लिया)
तभी अभय चिल्ला पड़ा।
” सही कहा आपने …”
(अभय भी घृणा से कमल किशोर को देखते हुए…दांत पीसकर )
“ये राक्षस क़तई बेक़सूर नहीं है ..मैं जानता हूँ ! ”
(फिर शीतल की माँ की और देखते हुए)
“पर वो क्या है न, वकील थोक के भाव में मिलते हैं ..पर उन्हें केस नहीं मिलते ! सालों चलने वाले मामलों में, पैसे कितने मिलते हैं, ये किसी से छिपा नहीं है!
जो फ़ीस हम जैसे मामूली वकीलों को मिलती है न, वो घर चलाने के लिए भी काफ़ी नहीं होती !
तो बस ज़मीर मार के, यहाँ जो ही केस मिल जाए, डकैती, रेप, दहेज के आरोपियों का ही सही…. हम तुरंत स्वीकार कर लेते हैं!
(आँख से छलकते आँसुओं को पोंछते हुए)
“और हाँ! मुझसे ज़्यादा आपका दुख कौन समझेगा मैडम! इन पैसों की मुझे सख़्त ज़रूरत है क्योंकि परसों मुझे अपनी बेटी की बरसी करनी है…. जो पिछले साल
संदिग्ध हालात में ससुराल में जली पाई गई थी!
(रूँधे गले से )
कभी उसने ज़िक्र ही नहीं किया कि दहेज लोभी उसे किस हद तक सता रहे थे ! “
(सुनते सुनते ही शीतल की माँ की पकड अभय के कॉलर पर कमजोर होती गई और वहीं ज़मीन पर वो धम्म से बैठ कर, फफकर रो पड़ी )
(आँसू पोंछते हुए अभय ने झुककर अपना चश्मा उठाया और टूटे चश्में को पहनते हुए नोटों के बंडल को हिलाते हुए कहा,)
“चाहे अनचाहे, ज़मीर का सौदा करना पड़ता है मैडम! ज़मीर से घर नहीं चलते आज कल!
ये नोटों का बंडल, मेरी परिस्थिति और मेरे हल्के ज़मीर पर, निश्चित ही भारी है ! ”
(और अपनी स्कूटर की ओर तेज कदम चल दिये )
-सर्वाधिकार सुरक्षित- पूनम झा ( महवश)