ज़मीं पर उतरने की फ़िराक़ देखे है
ज़मीं पर उतरने की फ़िराक़ देखे है
चाँद आसमाँ से ये ख्वाब देखे है
ज़रा ज़रा से फेंककर पत्थर इक नादां
समंदर में तूफ़ां के उठान देखे है
ईश्क़ के क़ायदों से होने को वाक़िफ़
दिल की कोई हसीन क़िताब देखे है
हां उम्र-ए-रवाँ के तज़रबों से ज़ालिम
संजीदा कहानियों में मज़ाक़ देखे है
बहुत दिनो से सवालिया नज़र है उसकी
रिश्ता तोड़ने का सुराग देखे है
समझे है लफ़्ज़ों की गहराई इसलिए
पढ़ने से पहले उनवान देखे है
ख़ूबसूरत सी दिलरुबा ग़ज़ल देखकर
वो ‘सरु’ की क़लम के अंदाज़ देखे है