ज़माने की बुराई से खुद को बचाना बेहतर
घोर अंधेरा हो तो एक दिया जलाना बेहतर
ज़माने की बुराई से खुद को बचाना बेहतर
जिम्मेदारियों के बोझ से बाहर निकलकर
झमाझम बारिश में बेफिक्र नहाना बेहतर
आये दिन कोई न कोई जिया जला जाये
खुद और खुद के लिए हंसना हंसाना बेहतर
जब गुजरने लगे मुश्किल के दौर से
जहां के मालिक से उम्मीद लगाना बेहतर
एक- एक करके जब सब साथ छोड़ने लगे
त्यागियों को याद कर खुद को समझाना बेहतर
समय के चक्र को कोई रोक नहीं सकता
जो बात दिल को लगे उसे भूलना बेहतर।
मेहनत कर जीत हासिल करते रहिए,
पर कभी-कभी औरों के लिए हारना बेहतर।
समझदार हैं, सर के ताज हैं क्या कहने,
कभी-कभार बच्चों की तरह बिरझाना बेहतर
नूर फातिमा खातून” नूरी”
जनपद -कुशीनगर
उत्तर प्रदेश