ज़माने की असली तस्वीर
लोग कहते हैं की वो थी ही बड़ी संवेदनशील ,
हर बात को दिल और दिमाग से लगा लेती थी ।
बेपरवाह होती तो आज यूं जीवन ना खोती ,
आज हमारी खुशियों में शामिल हो सकती थी ।
हम पूछना चाहते है ऐसे लोगों से तब तुम कहां थे ?
रोक सकते थे न तुम उसकी ओर से हर तनाव को ।
तब तुम्हारी फिक्र,परवाह और वो मुहोबत कहां थी?
अब तो अपनी सफाई में बहुत बातें हैं तुम्हे कहने को।
यही है जमाने की असली तस्वीर,यही है सच्चाई ,
दो आंसू बहाकर किसी की मौत पर संताप करना ।
और फिर स्वर्गवासी व्यक्ति की बातें करना भी बंद ,
अपनी जिंदगी के मेलों में वापस मस्त हो जाना ।
झूठ है यह व्यक्ति के जाने का अपनों को गम होता है,
जरा सोचिए कितने दिनों तक गम सबको रहता है।
अंतिम संस्कार,चौथा ,१३वीं और १ली बरसी बस!
उसके बाद वो व्यक्ति लोगों के मन से भी उतर जाता है ।
यह है हमारे जीवन का देखा परखा कड़वा अनुभव,
जो इस मतलबी जमाने से हीअब तक हमने पाया है।
किस रफ्तार से बदलते हैं लोग नकाब अपने ,जनाब !
देखकर जिन्हे दिल कुछ परेशान और हैरान हुआ है।
मगर फिर सोचते है इसमें हैरान परेशान क्या होना ?
इस जमाने में लोगों की ऐसी ही फितरत रही है ।
आज वोह ,कल तुम ,परसों कोई और सबके साथ ,
ज़माने की सब भूल जाने की आदत अंजाम से जुड़ी हुई है।