ज़ख्म शायरी
ज़ख्म शायरी
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ज़ख्म अभी और भी गहरा होगा ,
दिल फिर बेजान सा पत्थर बनेगा ।
दिल में अब न कोई ख़लिश ही होगी ,
न तो लब हिलेंगे ,न ही कोई फरियाद होगा ।
नैन आठों पहर,सज्दे में झुकेंगे जिसके ,
सोचा था वो दिल,मोहब्बत का पैगाम देगा ।
हिज्र कामिल न हो,कभी उल्फत में जिसके ,
ऐसा ही वो, मेरा विसाल-ए-यार होगा ।
ज़र्द चेहरा ग़म-ए-इश्क़ की अलामत तो नहीं ,
इल्ज़ाम जुर्म का,मोहब्बत ने ही लगाया होगा ।
फ़क़त इक बात का दर्द सताता है मुझको ,
सदा मोहब्बत का अंजाम क्या ऐसा होगा ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २२ /०१/२०२३
माघ,शुक्ल पक्ष ,प्रतिपदा ,रविवार
विक्रम संवत २०७९
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